क्यूँ अच्छे संग होता बुरा…
क्यूँ बुरे संग होता खरा…
क्यूँ अच्छे संग होता बुरा…
क्यूँ बुरे संग होता खरा…
क्यूँ बुरे को कहते होशियार…
क्यूँ अच्छे को समझे बेकार…
क्यूँ मोहब्बत वाले से तकरार..
क्यूँ चापलूस की हो जय जय कार…
क्यूँ दिखावे वाले सच्चे लगते…
क्यूँ हक कहने वाले बुरे लगते…
क्यूँ मिलावटी लोग अपने लगते…
ये कैसा है रब तेरी दुनिया का उसूल…
अच्छों को ठोकरें, बुरों को दे तोफे में फूल…
ये कैसा है रब तेरी दुनिया का उसूल…
ये कैसा है रब तेरी दुनिया का उसूल…
ये कैसा है रब तेरी दुनिया का उसूल…
अनीश मिर्ज़ा