खुशियों का लगता है बसेरा…
रौनक से सजता है सवेरा…
बच्चों की नटखट शरारतों से गूंजे घर सारा…
बेटियों के आने से खिलता है बाबुल के दिल का गलियारा…
बेटियां हैं अनमोल गहना… इन्हें पराई ना समझना…
ये रब की रहमत का खज़ाना… सदा इन्हें मुस्कुराना…
दुआओं में है तासीर इनकी झोलियां भर दुआएं लेना…
बेटी-बहन को कभी भूल कर भी दुःख ना देना…
ये राज़ी जब हो जाती हैं तो रब की बरकत भी महसूस होती है…
फिर बेटियां बहने जब भी मायके से ससुराल जाती हैं….
वो दुआएं तो हर लम्हा देती हैं… पर अपने जाने के बाद इक उदासी छोड़ जाती है…
सूना सूना घर लगता है सारा… जब भी बेटियां मायके से ससुराल जाती हैं…
ये बेटियां ही क्यों घर छोड़ दूर बिहाई जाती हैं…
ये बेटियां ही क्यों घर छोड़ दूर बिहाई जाती हैं…
ये बेटियां ही क्यों घर छोड़ दूर बिहाई जाती हैं…
अनीश मिर्ज़ा