ढोंग पखंड के गीत गाते…
नए नए स्वांग के दीप जलाते…
अंधी जनता को और अंधा बनाते…
शंका में उलझा कर खूब नोट कमाते…
बाबागिरी के नाटक में बखूबी अभिनय निभाते…

कुछ है या नहीं जो भी मिले उसे यूँ ही उलझाते…
बाबागिरी भी फलता फूलता धंदा है आजकल…
जो भी आया इनके चक्कर में तब से जीना हुआ उसका मुश्किल…
दुनिया में गम पहले ही कम नहीं थे…
के बाबाओं की दुकानों ने लोग और परेशां कर दिए…
छोड़ो इन झूठे ढोंगियों के दर पर जाना…
फ़िज़ूल की बातों को क्यूँ दिल पर लगाना…
जो भी होगा वो हो कर रहेगा…
यूँ ही ज़िन्दगी को तकलीफ में क्यूँ बिताना…
कर पुख्ता यकीन इस कायनात के खालिक पर…
हर चीज़ है ताबे उसकी ही मर्ज़ी पर…
तलाश कर उसकी भटक ना दर-बदर…
तलाश कर उसकी भटक ना दर-बदर…
तलाश कर उसकी भटक ना दर-बदर…
अनीश मिर्ज़ा