अब तो हर इबादतगाह में होती है एक दूसरे को लेकर ज़ुबान की लड़ाई…
सब भूल गए इंसानियत और भूल गए ख़ुदा की खुदाई..
यूँ तो कहते हैं हम हैं भाई भाई.. फिर दिलों में क्यूँ दुश्मनी की दीवार बनाई…
आजकल इबादत भी होती है दिखावे की…
धर्म के ठेकेदार करें बातें बहकावे की…

रब की बात माने या ना माने…कोई हर्ज़ नहीं…पर इनके लिए अपने लीडर की क्यों हर बात सही…
कौन कितने हैं हमारी तरफ…
कौन कितने हैं दूसरी तरफ…
ग्रंथों में कहां लिखा ये हर्फ़…
जब रखा ना खालिक़ ने कोई फर्क…
तो इंसान क्यूं बनाए सरहदें हर तरफ़…
क्या दिवाली… क्या होली…
जब दिलों में ही मैल फ़ैली…
कोई कहे राम राम…
कोई कहे या अली….
मुरझाए हैं फूल… गुमशुदा है हर कली…
आओ मिल कर एक ऐसा जहां बनाए…
जात-पात के ढोंग से खुदको बचाएं और दिलों को दिलों से मिलाएं…
आओ प्यार की बारिश में डूब कर एक सुनेहरा कल सजाएं… जहां स्वयं ब्रह्म के दर्शन हो जाएं
अनीश मिर्ज़ा…