कोई केसरिया पहने…
कोई ओढ़े हरा रंग…
कोई सफ़ेद में दिखे…
कोई बांधें काला रंग…
लिबास से नहीं पता चलता ईमान का सही ढंग…
जो मर्ज़ी हुलिया बना लो रब है साफ़ दिलों के संग…
यूँ तो उपर से दिखते हैं अकीदतमंद…
चोर डाकू बांटे आजकल इल्म का आनंद…
सौ में से दो होंगे सच्चे संत पीर…
दुनिया में नहीं रही अब उनकी तासीर…
बाकी हैं धन के पुजारी,,देते अरमानो को चीर…
खिलाओ न इन्हें हलवा पूरी खीर…
ढोंग ढकोसलों से बचो… कह गए संत कबीर…
ढोंग ढकोसलों से बचो… कह गए संत कबीर…
ढोंग ढकोसलों से बचो… कह गए संत कबीर…
अनीश मिर्ज़ा
