जिस घर में होती हैं बेटियां…
रब की रहमतें बरसती हैं वहां…
हर बाप के सर का ताज है उनकी बेटियां…

घर की ज़ीनत का राज़ है उनकी बेटियां..
हर माँ की परवाज़ है उनकी बेटियां…
परिवार के लिए दुआ है उनकी बेटियां….
मगर शमशान है वो घर बेटियों की कदर नहीं जहाँ…
शैतान हैं वो लोग जिन्होंने कुचली मासूम ज़िंदगियाँ…
इस बेशकीमती नेयमत को क्यूँ ठोकर मारे ये दुनीया…
बेटी जो किसी के घर आये क्यूँ मातम मनाये ये दुनिया…
सोच बदलो तब समाज भी बदलेगा…

बेटी को बेटों से कम समझने वाला कब सबक लेगा…
बेटी को बेटों से कम समझने वाला कब सबक लेगा…
बेटी को बेटों से कम समझने वाला कब सबक लेगा…
अनीश मिर्ज़ा…